समाज में एकता आवश्यक है, अगर हाथ की पांचों उंगलियों में स्वयं को एक- दूसरे से सर्वश्रेष्ठ मानने की होड़ शुरू हो जाये, तो सोचिये क्या होगा। अंगूठा अहंकार से बोलेगा मैं तर्जनी से श्रेष्ठ हूं, तर्जनी बोलेगी मैं अनामिका से श्रेष्ठ हूं, मध्यमा बोलेगी मैं कनिष्ठा से श्रेष्ठ हूं और ऐसे यदि चलता रहे तो फिर बन्द मुट्ठी की ताकत कैसे पता चलेगी।
ईश्वर ने मनुष्यों को भी समाज में अनेक प्रकार की भिन्न भिन्न क्षमताओ के साथ यदि जन्म दिया है। तो समाज को भी एक दूसरे से जुड़कर एक-दूसरे के मान-सम्मान का ध्यान रखकर अपनी सम्पूर्ण ताकत से एकता समाज कार्य करना चाहिए।